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Tuesday, April 12, 2011

Unki Raah mein!



Chalte chalte raah mein thokar lagi ek din
Chhil gaye ghutne dono
Kuch khoon bhi baha
Kaafi dard bhi hua.

Girte-sambhalte pahaunch gayi ghar.
Khabar pahaunchi door des tak.
Aaye bahaut chahne wale.
Kisi ke khat toh kisi ka afsana mila.

Dhoondh rahi thi nazrein jinko
Bas unka na koi thikana mila.
Peehd mein bhi ye hi ummeed lagi rahi
Ki ik baar toh palke mujh par aake rukengi.

Pal pal karte beete din-mahine.
Na zakhm raha na zakhm ka dhyaan.
Jis oar nazar ghadhaye baithi thi
Wo bhi dhundhla gayi raah.

Har shaam wahan bajti hai sapno ki shehnayi
Din mein kohra theherta hai.
Har din us gali mein
Mera saya tumhe dhoondhta hai.


चलते  चलते  राह  में  ठोकर  लगी  एक  दिन 
छिल  गए  घुटने  दोनों 
कुछ  खून  भी  बहा 
काफी  दर्द  भी  हुआ .

गिरते -संभलते  पहुंच  गयी  घर .
खबर पहुंची  दूर  देस  तक .
आये  बहुत  चाहने  वाले .
किसी  के  ख़त  तोह  किसी  का  अफसाना  मिला .

ढूंढ  रही  थी  नज़रें  जिनको 
बस  उनका  न  कोई  ठिकाना  मिला .
पीड़ में  भी  ये  ही उम्मीद लगी  रही 
की  इक  बार  तो पलकें मुझ  पर  आकर  रुकेंगी .

पल पल करते बीते दिन -महीने .
न  ज़ख्म  रहा  न  ज़ख्म  का  ध्यान .
जिस ओर नज़र  गढ़ाए  बैठी  थी 
वो  भी  धुंधला  गयी  राह .

हर  शाम  वहां  बजती  है  सपनों की  शेहनाई 
दिन  में  कोहरा  ठहेरता है .
हर  दिन  उस  गली  में 
मेरा  साया  तुम्हें  ढूंढता  है .

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